संस्मरण
वो आनंदप्रद दिन थे. आज आनंद मूवी को 50 बरस पूरे हुए है और मुझे उस वक़्त की जाने कितनी ही यादें आकर बहलाने लगी दुलराने लगी.
वो बड़े ही प्यारे दिन थे. जब आनंद रिलीज हुई थी मै छटवीं में पढ़ती रही होंगी उसके पहले की बात है. हम रेडिओ पर फिल्मों के गाने सुनते थे जिनमें आनंद के गाने बहुत ही भाव -विभोर कर देते थे.
मै तब बाबूजी के यंहा बुआ के यंहा से आई थी और उन्हीं दिनों दीदी का परिवार भी बाबूजी के गांव में दूसरे घर में आकर रहने लगा था. तब जीजाजी बहुत सी फ़िल्म पत्रिकाएं माधुरी, चित्रलेखा व अन्य लाते थे. उन्हीं में मै अपने प्रिय हीरो -हीरोइन के बारे में पढ़कर परिचित हुई थी. तभी आनंद मूवी की स्क्रिप्ट की किताब भी जीजाजी ने लाये थे. मैंने वह भी पढ़ी थी और तभी से मै अपने हिसाब से स्क्रिप्ट लिखती थी जितना मुझे समझता था मै खुद ही लिखती थी. साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग जैसी साप्ताहिक पत्रिकाएं भी जीजाजी हमेशा लाते थे और मै उनमें साहित्य व समाज की तत्कालीन बातें, लेख व रिपोर्ट पढ़ती थी. तभी से साहित्य का चस्का लगा और रेडिओ पर गृह -कार्य करते हुए मै गाने सुनती. उद्घोषकों की मधुर आवाज में दिलकश अंदाज में जब गीतों भरे प्रोग्राम सुनती तो गांव में दिन -रात के गुजरने का मधुर अहसास होता था. वो अहसास आज भी दिल में समाया हुआ है. और मन को आनंदित करता है. उन दिनों के सच्चे आनंद को दिल हमेशा याद करता है.
आनंद फ़िल्म के बहाने से और भी मधुर यादों के पृष्ठ मै पलटूँगी. आशा है आप इस श्रंखला से जुड़े रहेंगे.
लेखिका -जोगेश्वरी सधीर
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