मौलिक स्वरचित कविता
कविता कुँआर माह की…
आज एक कविता की तरह
बरसने लगी बरसात |
मै काम में खोई थी
पर ठिठक गईं देखकर
कि कैसे हो रही है बरसात |
हल्की सी गर्जन -तर्जन
कुँआर की उमस में
यूँ खड़े खड़े हो गईं बरसात |
जैसे कर गया हो कोई
मीठी सी दिल की बात
यूँ खड़े खड़े होने लगी थी
आज छम छम बरसात |
फुंगियों से पानी बह निकला
बहने लगी नाली -सड़कें
बीते वक़्त की याद आई
जिसे गुजरे बरसों बीते
मेरे गांव के टूटे छप्पर से
होती थी लयबद्द बरसात |
वो बालू का भींगापन
पिता का प्यार माँ का आंचल
याद आई भादो की बिजुरिया
वो बरसती एकाकी चांदनी
वो भरे -भरे तृप्त खलिहान
याद आ गया सारा विहान
आज तो संग है बस बियाबान
मै खोई खोई सी देखती रही
यूँ झुमकर हो रही थी बरसात |
रचना -तिथि 12सितंबर 2006
जोगेश्वरी सधीर
9399896654
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