कविता -मै ही शिव हूँ..
अजन्मा
अविचलित
शाश्वत शिव
मेरे भीतर
जल रही है
निरंतर
जीवन की ज्वाला
पी जाता हूँ मै
विष का प्याला
जगत कल्याण की
मुझमें है हाला..
मै ही शिव हूँ
चलाती है मुझे प्रकृति
मै हूँ उसका यति
वंही है मेरी सति
मै ही शिव हूँ….
कवयित्री -जोगेश्वरी सधीर
मौलिक व स्वरचित @कॉपी राइट
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