मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
मै हमेशा अपने जीवन मे बीते घटनाक्रम और उन अतीत हो चुके लोगों पर लिखती हूं जो मुझे बहुत प्रिय रहे. मुझे छोड़कर चले गए पर जब लिखती हूं तो कुछ पल उनका सानिंध्य महसूस करती हूं.
मेरी इस आदत पर मेरी बड़ी दीदी ने खीज कर मुझे एक विडिओ भेजा कि यादों के जंजाल से कैसे मुक्त हो.
मै बड़ी बहन के इस सोच से आहत हुई. अरे भई, जब आप रात -दिन नए -नए साड़ी और बाजार को जंजाल नहीं समझकर सुखी महसूस करती हो तो मै चंद लम्हें यदि उन लोगों को याद कर लेती हूं तो आप क्यों इतनी कुढ़ती हो?
वो मेरे अपने थे जिन्होंने मुझे बहुत प्यार से पाला -पोसा और हर सुख व गौरव मुझे दिए. उन्हें भूल जाऊ और सोचूं कि उनकी स्मृति तो यादों का जंजाल है तब मुझ-सा कृतध्न कौन होगा?
ये सब मेरे सुख के लिए कितना कष्ट उठाते रहे. और आज भी अपनी यादों से मुझे ख़ुशी देते है. तब उन्हें जंजाल समझ कर झटक नहीं सकती.
पर मै बहन को ये अहसास बता नहीं सकती कि अपनों की स्मृति मुझे सुकून देती है जंजाल नहीं है वे लोग. बस मुझसे दूर हो गए है पर दिल मे उनकी जगह सुरक्षित है. वे स्मृति की धरोहर और सुखद अहसास है.
जोगेश्वरी सधीर लेखिका
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