Our support team is always ready to help you

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Etiam non nisl in velit dignissim mollis.

Contact us

Let’s connect

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Etiam non nisl in velit dignissim mollis a rhoncus dolor. Vivamus egestas condimentum erat, in iaculis nulla blandit ut.

Email

Send us an email for support:
support@superbthemes.com

Phone number

We’re only a call away:
+1 (234) 567-8910

Address

735 Plymouth Street
West Haven, CT 06516

ज़ब तुम छोड़ कर गईं….

कहानी

ज़ब तुम छोड़ कर गईं….

नमिता!मै उस दिन ऑफिस से थका -हारा लौटा था तो मुझे ताला लटका मिला था समझ नहीं आया क्या करू? तुम कई दिनों से नाराज थी और मुझे जाने की धमकी दे रही थी. मैंने उसी साइड वाले आले में टटोला तो चाबी रखी थी तुम अक्सर लड़ कर चले जाती थी तब मै बस तुम्हारा इंतज़ार किया करता था और क्या करता?

छोटी सी नौकरी थी मेरी और तुम सुख -सुविधा में पली जिद्दी लड़की थी जिसे अपनी शर्तो पर जीना था न कि मेरी हैसियत से समझौता करके.तुम्हारे सपने असीम थे और मेरी तनख्वाह बेहद कम थी. जिस मोहल्ले में मैंने किसी तरह से एक हाल का रूम लिया था वो अच्छा था मै छुट्टी में टॉयलेट -बाथरूम भी साफ कर दिया करता था. अच्छा सा सोफा -सेट भी मैंने अपनी सेविंग बचाकर ले लिया था और मै रात -दिन एक करके हर साधन जुटा रहा था जिससे तुम्हें अच्छा महसूस हो सके.

तुम्हारे पापा जितनी बड़ी हैसियत नहीं थी मै एक छोटा सा अकॉउंटेंट था पर तुम इस बात को नहीं समझ सकी कि अव्वल तो बिना सिफारिश के मैंने नौकरी हासिल किया था. तुम नहीं समझ पाई थी कि कैसे महीने भर खटता हूँ तब मुझे वेतन कटकर 15000/रू मिलता है. तुमसे शादी में मैंने अपनी सारी सेविंग खत्म कर दी थी और खाली हाथ हो गया हूँ वक़्त -बेवक़्त यंही सेविंग का सहारा है मुझे. खुद कैसे भी खाता पर तुम्हारे पसंद की रबड़ी जरूर लाता था ज़ब मावे वाले की दुकान के सामने से गुजरता. आज भी उस दुकान के सामने से जाते वक़्त तुम्हारी याद आती है सोचता हूँ तुम्हें लाने चल दूँ जैसे पहले मै ऑफिस से लौटकर तुम्हें नहीं पाता तो लाने के लिए निकल जाता था और तुम भी कितनी ही गुस्सा क्यों न हो? मुझे देखते ही मुस्कराते हुए मेरे साथ आ जाती थी.

सबकुछ कितना सहज था जीवन में जितना आनंद था मै उससे ख़ुश रहता और अपनी नौकरी करता था. नौकरी मेरे लिए बहुत जरूरी थी मै जानता था भविष्य में हम एक नए सदस्य को लाएंगे और मुझे उसके लिए तैयार रहना था. मेरी अपनी सीमा थी उसी में मुझे बहुत मेहनत करके प्रमोशन पाना था.

तुम टीवी देखने और पत्रिका पढ़ने में मस्त रहती थी. दोस्तों ने कहा था कि भाभी भी पढ़ी -लिखी है उसे किसी पहचान के स्कूल में लगा दो तो घर की परिस्थिति सुधरेगी. पर मै भी अलग ही धुन में रहता था. और सोचता था कि यदि तुम मुझ जैसे एक तृतीय वर्ग के अकाउंटेंट के साथ गुजारा कर रही हो तो तुम्हें क्यों परेशान करूँ और मैंने तुम पर काम का दबाव कभी नहीं डाला.

यंहा तक कि माँ को गांव के घर में ही रखा ताकि तुम्हें छोटे से हाल जैसे रूम में दिक्कत नहीं हो.

नहीं पता मेरी इस सोच को तुमने कबसे मेरी कमजोरी समझना शुरू कर दिया था और तुम मुझे छोटा समझने लगी थी. तुम्हें इन सारे समझौतो में छिपे मेरे प्यार से कोई मतलब नहीं था.

क्या पता क्या था ऐसा कि धीरे -धीरे तुम पड़ोस के शिरीष से इम्प्रेस होती चली गईं. वो कॉलेज का लड़का तुम्हें मेरे ऑफिस जाने पर घुमाने ले जाता ऐसा मुझे पड़ोस वाली मिश्रा आंटी ने बताया और आगाह किया था कि मै शिरीष को हटकूँ.

पर मै ऐसा नहीं कर सका क्या यंही मेरी कमजोरी थी कि मै सख्ती से पेश नहीं आया और अपने काम में डूबा रहा. आज भी तुम्हारे जाने के बाद भी उसी कमरे में रहता हूँ ताकि तुम यदि लौटो तो यंहा आओ.

मै आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ क्योंकि ये घर तुम्हारा भी है ये गृहस्थी तुमने भी तो मेरे साथ सजाई थी. तुम अपने इस पहले विवाह के रिश्ते को कैसे बिसार सकती हो.

मिश्रा आंटी कहती है कि शिरीष भी कंही चले गया है पर मै ध्यान नहीं देता. मुझे अपने प्यार पर पूरा विश्वास है कि तुम मेरे प्यार को भूल सकती हो पर अपनी इस गृहस्थी को नहीं भूल सकती.

मै आज भी तुम्हारे पसंद के साबून और अगरबत्ती को लाकर रखता हूँ क्योंकि तुम्हें खुशबू वाले सामान पसंद है. हमेशा धुली चादर बिस्तर पर बिछाकर रखता हूँ. बाथरूम भी साफ रखता हूँ तुम्हें जो पसंद है वो सब करता हूँ और मुझे पता है तुम एक विवाहिता हो जो अपने घर को कभी नहीं भूल सकती.

ये पत्र लिखकर बिस्तर के सामने लैंप के स्टूल पर रखें हुए हूँ ताकि तुम लौटो तो मेरे जज्बात को पढ़ सको और जान सको कि मेरी इस छोटी सी दुनिया की जान हो तुम…. इस गृहस्थी का केंद्र तो तुम्ही हो.

तुम्हारा सौमित्र…

(मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित कहानी )

लेखिका -जोगेश्वरी सधीर

9399896654

ReplyForward

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *