दिलीप कुमार ने अपने जमाने मे यह किरदार निभाया था और इसे अमर कर दिया. उनकी हर अदा आगे आने वाले हीरो के लिए चुनौती बनी और सभी हीरो ने दिलीप को अपना आदर्श समझा चाहे वो धर्मेंद्र हो मनोज कुमार हो या संजीव कुमार सभी उनसे बहुत प्रभावित थे.
देवदास एक मूवी थी जो काल्पनिक किरदार पर थी पर ऑडियेन्स को कभी भी वो महज कल्पना नहीं लगी उसे सच ही समझा गया.
देवदास एक ऐसा किरदार था जो हमेशा सच्चा लगा जिसे तब की जनरेशन ने अपनाया और एक ट्रेजिक लव स्टोरी को मान्यता मिली तब दुखी नगमो का दौर चला था जो बहुत आगे तक चलता रहा.
देवदास मे नायक अपनी प्रेमिका को चाहता है और वंही चाहत उसकी जिंदगी बन जाती है. बचपन का प्यार दिमाग़ से ओझल नहीं होता और देवदास अपना घर नहीं बसा पाता वो इधर से उधर भटकता है और जवानी मे ही उसकी जिंदगी खत्म हो जाती है अपने अनकहे प्यार के लिए वो जिंदगी समर्पित कर देता है.
आगे चलकर माँ -पिता प्यार की इस दीवानगी से घबरा गये और उन्होंने बच्चों को फिल्मों से दूर रखना चाहा. लेकिन फ़िल्में जिंदगी से इतनी जुड़ गईं थी कि अलग नहीं की जा सकी.
हाँ!प्यार की दीवानगी की जगह हल्की -फुलकी कॉमेडी वाली फिल्मों को प्रमोट किया गया आगे ह्रषिकेश मुखर्जी ऐसी फिल्मों को लेकर आये जो जिंदगी के सच से जुड़ी थी और गुदगुदाती थी.
फिर भी दिलीप कुमार ने अपनी भूमिका को जिस तरह से जीवंत किया उससे ये किरदार देवदास अमर हो गया.
जोगेश्वरी सधीर @jogeshwarisadhir @कॉपी राइट
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