परिमाल के विवाह में योद्धाओ की लड़ाई
Written by Jogeshwari Sadhir Sahu
(पिछले से आगे )
चंदेली के राजा ने विवाह के लिए महोबे में लड़ाई लड़ी उनका सामना माहिल और भोपति राजकुमारों से कैसे होती है आओ इसे आगे देखते है.
ज़ब माहिल के कई वार खाली पड़ गए तो तब माहिल मन में सोचने लगे इसकी माँ ने कितने उपवास किये है?
फिर माहिल ने गुर्ज उठाया सो राजा पर चला दिया. देवी शारदा दाहिनी हो गईं सो बुर्ज धरती पर आकर गिरा. तब माहिल ने सेर भर की गांसी वाली कमनिया हाथ में ले ली. सिंदोही की फोंक जमा कर औ गजबेली की गांसी लग रही. कमनिया भुज -दंड पर खिंच ली तिवा मर -मर होने लगा. चेहरे पर चंदेले के आकर लगती सामने उसने कैवरी छांड़ी दी.चंदेले का हाथी हट गया चंदेले को भगवान ने बचा लिया. माहिल मन में सोचने लगा ये तो महावीर बलवान है.
तब माहिल राजा से बोलने लगे -सुनो राजा परिमाल!अभी लौट जाओ चंदेली को. काल के गाल में मत झोंको अपने आप को. तब परिमाल ने हँसकर जवाब दिया-सुन लो!उरई के परिहार!ये क्षत्रिय धर्म नहीं कि रण छोड़कर पीठ दिखा कर चले जाये. जो हम पीछे को कदम रखेंगे तो क्षत्रियपन नशायेगा. चौथा वार और कर लो नहीं तो स्वर्ग में बैठ कर पछताओगे. सत्तर मन की सांगी तुरत हाथ में लेकर सो माहिल ने हाथ में उठा ली और राजा को दुचित्त देखकर राजा पर चला दी लेकिन हाथी ने पाँव बढ़ा दिया और सांगी नीचे गिर गईं.
तब चंदेले ने ललकारा -अब तुम सुनो!महिलिया राय!अपने अपने औसरो भरो जैसे कुंआ से पनिहारिन जल भरती है. चार वार हमने तुम्हारे झेले अब तुम दो वार हमारे झेलो.
ऐसा कहकर परिमाल ने सिरोही लेकर गज -मस्तक पर चला दी. हाथी के मस्तक पर मारकर माहिल को बांध लिया. माहिल के बंधते ही प्रलय हो गईं और भोपति के मन में ताब नहीं रहा.
भोपति सामने आकर बोला -माहिल को किसने बांधा मुझे सामने से जवाब दो. तब परिमाल ने हाथी बढ़ा कर कहा -सुनो!जगनसीराय!हमने माहिल को बांधा है.बहिनी ब्याह दो जल्दी से क्यों आकर रार (दुश्मनी )बढ़ा रहें हो?
इतना सुन कर भोपति बोले -क्यों? भरम गंवा रहें हो? जितने चंदेली से आये है सबके मुंड (सिर )काट लेंगे.
तब चंदेले भोपति से बोले -जोधा (योद्धा )!सुनो!भोपति राय!बिना ब्याहे हम नहीं जायेंगे चाहे प्राण रहें कि जाये. इससे तुमको समझाते है बेकार में आकर रस में जहर मत घोलो.बावन गढ़ हमने जीते, जीते बड़े -बड़े सरदार!जो अधिनी हमारी करेगा जग में वो हमारे मित्र समान हो जायेगा.
तब भोपति बोला -क्यों तकरार करते हो? अब शायद तुम्हारे सिर पर काल आया है इसलिए बकवास कर रहें हो? लो!तुम हौदा में सम्भल जाओ!हमारी तलवार देख लो.
सुमिरन करके महादेव को और मनियाँ को बार -बार सुमर(याद )करके भोपति ने तलवार खींच ली. ज़ब सामने से झड़ाका किया तो बाएं उठी गेंड की ढाल. जगनिक की शिरोही (तलवार )टूट गईं. उसका कोई बाल भी बांका नहीं हुआ. मन ही मन भोपति सोचने लगा -ये क्या अब करतार करेगा? इसी शिरोही से गज (हाथी )काटे और छांट -छांट कर असवार काटे वोही सिरोही धोखा दे गईं अब मेरे मन में अधिक विचार हो रहा है. भैया लौटो!भतीजा लौटो और सब कुटुंबी लौट जाये!लेकिन रण में तुम मत लौटना वर्ना जग में ठिकाना नहीं होगा.
ऐसा भोपति अपने आप को कहते हुए गुर्ज उठाकर राजा पर चला दिया. चंदेले का हाथी हट गया जिससे गुर्ज नीचे गिर गया. तब राजा ने भोपति या जगनिक को ग़ाफ़िल करके तुरंत ही बंधवा लिया.
भोपति के बंधते ही महोबे का लश्कर रैन -बैन हो गया. तुरंत ही सांडिया (दूत )को बुलाकर राजा परिमाल ने पाती लिखी ऐसी कि ये पाती लिखकर तुमको भेजता हूँ इसे पढ़िए वासुदेव भूपाल (राजा )!माहिल और भोपति जो आपके बेटे है उन्हें हमने रण में बांध लिया है. बेटी को जल्दी से हमसे ब्याह करा दो अब क्यों देर लगा रहें हो?
पाती लेकर धामन चला और महोबे में आकर राजा को पाती दी. राजा ने पाती बांची (पढ़ी ). पढ़कर राजा मन में सोच -सोच कर रह जाते है. फिर लिखकर जवाब दिया -सुनो!चंदेली के राय (राजा )!महोबे का गढ़ कठिन मवासी (आवासी )है सीधे से ब्याह नहीं होगा. इसलिए चंदेली लौट जाओ!क्यों सिर पर काल को मंडरा (घुमा )रहें हो?
ऐसी पाती लिखकर धामन को दे दी. तब परिमाल ने पाती पढ़ी और अपना हुक्म फ़ौज में फरमा (डिलीवर कर )दिया -मेरे दल में युद्ध का डंका बजे और सेना तुरंत तैयार हो जाये.
इतना आदेश होते ही चार घड़ी के अरसा (समय )में तीन लाख असवार सज गए. दो हजार तोपे सजाई पांच हजार हाथी सज गए. समर (युद्ध )भयंकर हाथी सजा कर उसपर वीर सरदार चढ़े. कूच का डंका बजाकर लशकर महोबे की ओर चला. इधर से वासुदेव का लशकर उधर से परिमाल का लशकर आया और दोनों फ़ौज के बीच आठ खेत का अंतर रह गया. तब मालवंत (राजा )ने हाथी आगे बढ़ाकर ऐसी ललकार दी. कि कौन सुरमा (वीर )चढ़ आया है? जिसने धुरा (सीमा )दबाई (चढ़ाई की) है? किसने माहिल और भोपति को बांधा है?
तब आगे आकर राजा परिमाल ने जवाब दिया कि हमने माहिल और भोपति को बांधा है. बेटी की भाँवरी डलवा दो वर्ना महोबे को ही दबा देंगे. (कब्जा कर लेंगे )
यह सुनकर वासुदेव बोले -मन के अच्छे राजा हो जो कुछ भी बात संभाल कर नहीं बोलते हो. महोबे में ब्याह नहीं होगा चाहे कोटी अवतार (जन्म )लो.
इतना सुनकर चंदेले बोले -सुनो!नृप (राजा )वासुदेव सरदार!तुमने सगाई नहीं कराई है पर हमारे कुल में यह व्यवहार (चलन )है. सिँह को कौन न्योता भेजता है जो वन में जाकर शिकार करता है? वैसे ही समय देखकर क्षत्रिय ब्याहते है यंहा सगाई का क्या काम? जिसकी बेटी उजरी (गोरी )देखते है जिसका रूप तेग (कटार )की धार जैसे होता है उससे बल से ब्याह करते है. और क्षत्रिय तेग की धार को वरते (चुनते )है.
इतना सुनते ही वासुदेव के बदन में गुस्सा छा गया. उसने क्षत्रियों को तुरत तोप में आग लगाने (चलाने )का हुक्म दे दिया.
वासुदेव ने कहा -इन पाजियों (बदमाशों )को तुरंत ही उड़ा दो. ट्टूआ (तम्बू )-टायर (गाड़ी )छुड़ा लो.
तब तोपन में बत्ती दे दी जिससे धुंआ सरग (ऊंचाई )तक मंडराने लगा. लशकर में अंधेरा छा गया. बड़ी -बड़ी अष्टधातु की तोपे लशकर में गरजने लगी. पहले की तरह ही युद्ध होने लगा. जिन वीरों को तीर की गांसी (नोक )लगती है वो क्षत्रिय भरहरा खा कर गिरते है. तोपे गरज कर लाली हो गईं जवानन के हाथ तोपों पर धरे नहीं जा रहें है. चढ़ी कमनिया (धनुष )पानी जैसे लचक गए है जिससे चुटकीन के मांस उड़ गए कमान खींचने से.
सनसन सहटी छूट रही है जो काली नागिन सी मन्ना रही है. बाण कुहनिया छूट रहें है और मुल्तानी कमान छूट रही है. जैसे नागिन गुफा में घुसती है तैसे अंग में धंस रही है जाकर. जिस हाथी के गोला लगता है वो डौकि -डौकि (चीख )कर रह जाता है. जिस ऊंट को गोली लगती है पंसुरी उसके पार हो जाती है. जिस पैदल को गोली लगती है वो चकत्ता (चक्कर )खाकर गिरते है. पैग -पैग (कदम )पर पैदल गिर रहें और दुई पैग (दो कदम )पर असवार गिरे है. ऐसा समर महोबे में हुआ कि रक्त की धार बहने लगी. मुंडन (सिर )के ढेर लगे है और लोथिन उपर लोथिन (लाश )दिख रही है. पगिया (पगड़ी )लोहू (खून )में रंगी पड़ी है मानो कमल के फूल उतरा (तैर )रहें है. डारे गैहा रण में लोट कर प्यास -प्यास की रट लगा रहें है यानि जो घायल और जख्मी है चिल्ला रहें है कोई पानी तो पीला दो.
दोनों फ़ौजे संगम हो गईं है और चारों ओर तलवार चल रही है. अब महोबे के सिपाही झुके और रण में मारि -मारि करने लगे. घायल सहजादे उठ -उठ कर तलवार चलाने लगे. जो चंदेले के सिपाही थे सबकी कटा देऊ करवाय यानि काटकर मार दिया.
ऐसा भीषण युद्ध हुआ कि कायर तो प्राण बचाकर भागे. जिन्हें प्राण पियारे थे उन्होंने रण में हथियार डाल दिए. जो हाथी रण से विचले है उन्होंने मुर्दो पर पाँव रख दिए. इससे जो मुर्दो के नीचे छिपे थे वो बिना मारे ही मर गए. कोई तिरियन को रोते तो कोई लड़किन(लड़कों )को पुकार रहें है.
तब राजा हाथ उठा कर बोले -सुनो!महोबे के जवानों!तुम सब हमारे नौकर चाकर नहीं हमारे भाई लगते हो. युद्ध में जो जीतोगे तो सबको हाथ में सोने का कड़ा दिलाएंगे.
इधर चंदेले के सुरमा अंधाधुंध हथियार कर रहें है. लोहू की वर्षा हो रही है और असवार लाल -लाल रंग से शोभा पा रहें है. रण में खून की नहर बह निकली है और सिर उसमें कमल की तरह उतरा रहें है.
(ये वीर रस का काव्य है उसी का समान अनुवाद कर चित्रण किया है मैंने आशा है पाठकों को तत्कालीन युद्ध का पता चलेगा. आगे विवाह कैसे हुआ ये पढ़ेंगे )
लाशें बिछ गईं है धरती में घायल लोट -पोट हो रहें है. घोड़े लोहू में नहा गए. लाली फैल रही है रण में मानो फुलवारी फूल रही है. अल्ला -अल्ला कहे मुसलमान हिन्दू भगवान का नाम ले रहें है.
आधे जवान कटे महोबे के उनसे आधे चंदेले कटे. चिकने छैले भागे नाले की राह जो रात -दिन पराई नार को ताकते है. यह गति हो गईं लशकर की अब कौन बेड़ा पार लगाएगा. बड़े लड़ईया चंदेली के दोनों हाथ से तलवार करते है. नागदौनी के भाला घुमाते है जिससे उड़ती चिड़िया बंध जाती है.
(ऐसे बहुत वर्णन किये है अलहैतों ने पर अब हम सीधे विवाह पर आते है देखे क्या होता है आगे )
अकेले वासुदेव ही अब मैदान में रह गया. जैसे लड़के गबड़ी खेले और गिन -गिन के पाँव रखते है वैसे ही चंदेले लड़े कि महोबे के जवान भाग गए. तब वासुदेव ने हाथी बढ़ा कर कहा -अब सुनी लेऊ!चंदेले राय!हम तुम खेलते है रण -खेतन में दुई में एक वंश मिट जाये. पहली चोट करो तुम अपनी नहीं तो स्वर्ग में बैठकर पछताओगे.
इतना सुन कर चंदेले बोले -तुम सुन लो वीर परिहार!तीन नियम हमारे कुल में बांधे है. ना भागते के पीछा करते है ना पहली चोट करते है ना बंधे हुए को मारते है. लो शर (बाण )मार लो हमारी छाती में जो चीर कर उसपार निकल जायेगा. मै यदि पीछे को मुंह फेर लूँ तो क्षत्रियपन नाश हो जायेगा.
ये बातें चंदेले की सुनकर हँसकर वासुदेव ने सुमिरन करके रामचंद्र का कम्मर से तलवार झड़की और चंदेले पर चलाई. बाएं गैंड की ढाल उठी राजा के और शिरोही टूट गईं. मन में वासुदेव सोचे बड़े बली ये जोधा है और सांगी उठा कर चंदेले पर चला दी. तब हाथी हट गया और सांग जमीन में धंस गईं. गुर्ज उठा कर मालवंत ने चलाई तो छल करके परिमाल ने चोट बचा लिया. बड़ा सुरमा ये सपूत हुआ है अपने वंश का ऐसा मालवंत सोचने लगे.
जिस क्षत्रिय के कायर बेटा हो उसका वंश नाश हो जाता है. जिसके घर में नारी कलहनी उसकी सुख -सम्पत्ति नष्ट हो जाती है. हमको ईश्वर ने बेटी दी आज सारा गर्व का नाश हो गया. (ऐसा तब के राजपूतों की सोच थी )
मालवंत (वासुदेव )सोच रहे है जिसके घर में बेटी आकर जन्मी उसकी लाज करतार (भगवान )बचाये. सबै प्रतिष्ठा उसकी नाश होती है और संसार में अपकीर्ति होती है. हमसे अच्छे तो ब्राह्मण -बनिये अच्छे है जो दो -चार बेटियां पैदा करते है. आनंद से कन्यादान करते है और सभी सुखी होते है. बड़ी बुराई है क्षत्रिय में कन्या जनमें तो परिवार का नाश होता है. जमाई का शिश काटते है और बेटी को मारते है. ऐसी रीति क्षत्रिय में है जो हमसे सही नहीं जाती.
ऐसा सोचकर मालवंत ने चंदेले से कहा -गरुए नाते के लड़के हो सो तुम हमारे साथ चलो. तो हम बेटी का ब्याह करेंगे नहीं तो लौट जाओ!नर -राय!
इतना सुनकर राजा को तुरंत बंधवा लिया और बोले -कौनसी शेखी में डूबे हो. अभी अपनी बेटी संग भाँवरी डलवा दो.
तब वासुदेव बोले -मेरे बेटों के दंड खोल दो. हमारे दंड खुलवा दो. अभी ही बेटी ब्याह देते है मन में धीर रखो.
गंगा करी वासुदेव ने और बेटों के साथ राजमहल में जाकर पहुंचे. तुरत अपने मन में सोचे अब तो धोखे से ही काम बनेगा. महल में खंदक खुदा दिए उसपर पलंग बिछा दिया. फिर चंदेले को बुला कर कहा -अभी ही भौरी डलवा देते है. तुम सब लायक हो चंद्र वंश में यंहा पलंग पर बैठो राजा.
ज़ब राजा परिमाल पलंग पर बैठने लगे सामने पद्मिनी नारी ने आकर अपने पति को ईशारा किया कि इस पर मत बैठो.
क्रमशः
(इस तरह विवाह के लिए वीरता चंदेले कर रहें और वासुदेव छल से उन्हें मारने का यत्न कर रहें थे आगे अगले अंक में )
Jogeshwari Sadhir Sahu @copy right
6/1/23
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