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Bhuru my beloved dog

भुरू और झुंकि :लवली dogies!

भुरू और झुंकि :लवली dogies!

Jogeshwari sadhir sahu

मुझे बहुत ज्यादा दुख हुआ ज़ब मैंने मुंबई से लौटकर इन दोनों को देखी और उनके चेहरे पर दुख को पढ़ा.

हम सभी साथ थे इसी जनवरी में हम सब घूमने जाते थे. हमारी टीम थी हम सबकी दुनिया थी भरीपुरी जिसमें हम करीब 10जन थे.

27 दिसम्बर को हम सबने मेरा जन्म -दिन मनाये थे तब तो सभी थे झुंकि के पप्पी छोटू और w भी थे टिम्मी था और पापा थे साथ में कालू और जॉली भी आ जाते थे.

लेकिन फिर सभी बारी -बारी से बिछूड़ गये पहले छोटू और w गये और फिर टिम्मी गया. मैंने घर बेचने का फैसला लिया और घर बेचकर 7मई को निकली तब जैसे झुंकि और भुरू पर वज्रपात हो गया था. वो बेचारे धुप व गर्मी में झूलसते रहे. उन्हें पूछने वाले हम वंहा से चले गये थे वो बार -बार उस घर को जाकर देखते जंहा से उन्हें भगा दिया जाता था.

इस तरह से हम भी उन्हें याद करते पर हमारे पास और भी काम थे किन्तु उनके पास तो हमारे बिछड़ने का दुख ही था.

वो हमें खुले आसमान के नीचे याद करते थे. उनका कोई नहीं था वो रोते भुरू तो जैसे अनाथ हो गया था. झुंकि ने बच्चों के बिछड़ने का दुख देखी थी इससे वो भुरू को सहारा देकर संभालती रही.

उनका गम कम हो रहा था पर याद थी. उस घर तरफ जाते तो पत्थर मारकर बदमाश लड़के उन्हें भगा देते थे. इस तरह से हम उनकी यादों में बसे थे वो घर तो छूट गया था लेकिन सिंधी भैया की दुकान के सामने रहते थे.

जिसे जंहा जाना है चले जाता है पीछे यादें रह जाती है उनके लिए जो पीछे रह जाते है. हम यंहा से चले गए तो बेचारे भुरू और झुंकि ही रह गये.

कालू और जॉली भी चले गए. हम नहीं थे सबने भगा दिए.वो चले गये उनमें कालू को बीमारी थी खाँसता था मुझे बहुत चाहता था मुझसे खाने मांगता था जिद करके मांगता और खाता था. मै यंहा से गईं वो सब भगा दिए गये सिर्फ झुंकि और भुरू को रहने दिये दोनों रहते है जैसे मिलता है देते है खाते है और हमें याद करते है.

बेचारे नहीं पता कितना दुख लेकर रहे सारा कुनबा बिखर गया. खुले आसमान के नीचे हमें याद करते और भगवान को सुमरते रहते. उन्हें आशा थी कि हम लोग एकदिन आएंगे.

इस जगह पर हमारा निर्वाह नहीं था. पति घर छूटने से टूट गये और नागपुर प्रवास के दौरान ही बीमार व कमजोर हो गये. मुंबई जाते वक़्त उन्हें बहुत बड़ा अटैक आया तब मुंबई में बड़ी मुश्किल से उनकी सेवा कर खींच -तान कर उन्हें जीवित रखा फिर वो भी 7अगस्त को चले गये हमें बेसहारा करके. लेकिन उनकी शिक्षा और पेंशन हमारे साथ है.

हम बालाघाट आये तो मुझे पहले भुरू और झुंकि से मिलने की बहुत इच्छा हुई ज़ब सुबह मै यंहा आई तो मुझे उनकी हालत देख तरस आया. बहुत दुबले हो गये थे. भुरू तो मेरी दी बिस्कुट खाने लगा उसका चेहरा दयनीय था.

झुंकि तो मुझे चुपचाप देखती रही आज उसका दुख बहुत गहरा है मुझे देखकर याद कर रही थी कैसे थे उसके मासूम प्यारे बच्चे? कैसे खेलते और झगड़ते थे?

मुझे उसकी आँखों के दर्द का अहसास हुआ. वो कितनी ख़ामोशी से मुझे देखकर अपने दर्द को कह और सुन रही थी.

मै ज़ब झुंकि से बोलकर जाने लगी तो भुरू पहले ही अपनी जगह की ओर दौड़ कर चले गया उसे पता है अब वो घर और जगह हमारा नहीं है हम कंही बाहर चले गये है वंही से मिलने आते है बस एक नज़र उस घर को देखकर वो लोग आगे बढ़ जाते है समझ कर उन्होंने स्वीकार लिया इस सत्य को कि उनका जीवन अब सिंधी भैया के दुकान की तरफ है. ज़ब बारिश होती है तो वो लोग एक नये बनते मकान में चले जाते है.

भुरू बीमार है पर अपना चौकीदारी का काम नहीं छोड़ रहा है वो नये बनते मकान में जाकर रहता है भुरू के साथ ही झुंकि भी साये की तरह रहती और उसका साथ देती है. अब झुंकि बूढ़ी हो रही है क्या पता उसे बच्चे होंगे भी या नहीं पर भुरू का वो बराबर साथ दे रही है.

मैंने झुंकि को कही थी भुरू का ख्याल रखना तो वो बराबर ध्यान रखती और साथ देती है. झुंकि ने बहुत दुख सहा है अपने बेटों की मृत्यु को भी देखा और दुख झेला है. अब हमारे जाने पर भी उसने भुरू को संभाली.

पर आज मैंने झुंकि की आँखों में दुख देखी ऐसा दुख जो मैंने अपनी बुआ की आँखों में देखी थी ज़ब मै उनको छोड़कर बाबूजी के घर आई थी उस सदमे को मैंने बुआजी की आँखों में देखी थी. आज वैसा ही दुख मुझे झुंकि की आँखों में दिखा.

अब नवंबर में आउंगी तब तक दोनों रह लेंगे क्योंकि वो जान गये है कि अब मै यंहा उनके साथ नहीं रहूंगी. मै कंही बाहर रहती हूँ. ये वो दोनों जानकर अपनी जिंदगी अपनी जगह पर जी रहे है.

मै भी अपनी नई जगह से जुड़ कर अपने काम में मन लगा रही पर झुंकि और भुरू याद आएंगे. साल में एक बार आना होगा तब तक वो इस बिछोह को कैसे सहेंगे सोचकर उदास हो जाती हूँ.

Bye!झुंकि!bye!भुरू!

अच्छे से रहना ज्यादा याद मत करना बच्चों!

मै अब नवंबर में आउंगी फिर मै एक साल बाद ही आया करूंगी. हम सब अपनी जगह पर जियेंगे पर एक दूसरे को याद करते रहेंगे.

Jogeshwari sadhir sahu

विरार w मुंबई

9399896654


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