मौलिक व स्वरचित कहानी
मुट्ठी भर महुआ
व्रत -उपवास का दिन और दिन भर की गहमा -गहमी के बाद गोमती ने ज़ब किचन में कुछ बनाना चाहा तो देखी उसके पति सोम एक मुट्ठी में कुछ लिए तवे को देख रहें थे तो गोमती कुछ देर को किचन से बाहर आ गईं तब सोम किचन में कुछ करने लगे. थोड़े देर में अलग सी महक घर में फ़ैल गईं.
गोमती ने बेटे से पूछा तो वो बोला -कुछ किशमिश जैसा है..
तब गोमती को समझ आया सोम महुआ भून रहें है सिर्फ एक मुट्ठी महुआ…
पहले याद आया गोमती ज़ब शादी होकर उसके ससुराल गईं थी चिकला तो वंहा महुआ वन था. सुबह सब महुआ बीनने जाते थे घर भर में महुआ की महक फैली होती थी. महुआ की मादकता पूरे माहौल में घुल जाती थी.
किन्तु धीरे-धीरे महुआ का जंगल कटता गया किसी भी बहाने से और आज एक -दो पेड़ ही बचे है.
कंहा टोकरी और कोठरी में महुआ भरा होता था जिसकी मुठिया बनाते वो एक औषधि था लेकिन अब महुआ कंही नहीं है.
ये किसका दुश्चक्र है सब जानते है पर कोई महुआ को वापस नहीं लाना चाहता. गोमती के पति का गांव छूट गया.शहर में बस इसी महुये की ये रस्म वो निभा कर यादों में महुआ को बचाने की कोशिश कर रहें है.
गोमती को लगा उसके पति की मुट्ठी में महुआ नहीं अतीत का वैभव सिमटा है.
लेखिका -जोगेश्वरी सधीर
मोबाइल -9399896654
@कॉपी राइट
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