कुंदा जब गांव पहुंची तो शाम हो रही थी. वो एक पल सुने आँगन को ताकती रही फिर धड़धड़ाती भीतर घर में चली गईं. टूटा -फूटा सा घर किन्तु कितना अपना.
पीछे आँगन में जाकर पुकार लगाई -माँ ओ माँ !
माँ पीछे कुंए से पानी ला रही थी. तुरंत आ गईं.
तू आई कुंदा !
माँ उसे देखकर जैसे उसके बचपन में खो गईं जब कुंदा खेलकर लौटती तो उसे माँ गोद में उठा लेती थी. कुंदा सुबकते हुए बताती थी कि भैया ने गोटी छीन लिया है.
तब माँ उसे भैया को मारेंगे कहकर हाथ -मुंह धोकर उसे पाउडर -काजल लगा देती. कुंदा की बड़ी -बड़ी आँखों में काजल प्यारा लगता था. फिर माँ आरती करने लग जाती किशोर आता तब तक कुंदा भूल जाती अपनी शिकायत और वो उसके साथ पढ़ने लग जाती थी.
किशोर ने कितनी तेजी से पढ़कर विदेश की उड़ान भरी. कहा था कि जल्दी लौटेगा किन्तु पता चला वंही किसी शोभना से विवाह रचा लिया. विधवा माँ ने कुंदा का विवाद किया तो बहुत रोई और कुंदा कुछ दिनों और फिर महीनों में आती रही माँ से मिलने और घर को व्यवस्थित करने. फिर कुंदा भी अपने परिवार में व्यस्त और मस्त हो गईं. बरस बाद वो लौटती और माँ से कहती कि चलो माँ !हमारे साथ रहो.
किन्तु माँ बहाना बना देती कबरी गाय और उसकी बछिया का. किन्तु सच तो ये था कि किशोर किसी रोज़ लौटेगा तो फिर कंहा आएगा. अपने बचपन के घर ही ना.
कुंदा आकर बता रही थी, माँ भैया आ रहें है.
क्या? माँ की आँखें जैसे बरसना चाह रही थी.
और सच में अगली शाम किशोर आया. वंही किशोर जिसकी एक मांग माँ जैसे जान लगाकर पूरी करती थी. कितना बड़ा हो गया है. साथ में बेटा भी है.
बहू नहीं रही. कोरोना ने असमय उसे लील लिया. उसीकी अस्थि -विसर्जन वो गंगा में कराएगा. किन्तु गंगा की हालत तो खुद सोचनीय है. हक़ीक़त जानकर किशोर लौटा अपने गांव की उस नदी में अस्थि विसर्जन करने जो बचपन की आस्था को जगाती है.
सबकुछ दो दिन में निपट गया यादें भी और बातें भी. तीसरे दिन किशोर ने तैयारी कर माँ से कहा -चलो !हमारे संग रहना.
किशोर को देख माँ को अपने पति की यानि कुंदा के पिता की याद आ गईं. हाँ !जब गुजर गए तब ऐसे ही दीखते थे.
साड़ी से आंसू पोंछ माँ बोली -बेटे !अब गांव नहीं छूटेगा मुझसे. हाँ !मेरी अस्थि भी गांव की नदी में बहा देना और दोनों आधा -आधा बांट लेना.
किशोर ने माँ के पाँव छुए. नाती के सिर पर हाथ फेरकर माँ बोली -याद रखोगे ना मुझे.
यस !ग्रैंड माँ !
वो नौजवान बोला था.
बस कुंदा से जैसे इशारों में किशोर ने कहा था -लौटना होगा. तुम माँ का ख्याल रखना.
सबके जाने के बाद माँ ने अपने जर्जर पुराने घर को देखकर अपने आप से कहा -मै कंहा लौटूंगी. तुम सबके साथ शाम यंही जी लेती हूँ दो पल गुजरे लम्हों को.
और माँ ने तेज हवाओं के झोंको से बचने पुराने दरवाज़े को लगा दिया.
(मौलिक, स्वरचित कहानी. कॉपीराइट के अधीन )
लेखिका -जोगेश्वरी सधीर
बालाघाट मप्र 481001
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