स्वरचित व मौलिक कथा
मै बैंक गई तो बेटा लोन लौटाने का फार्म भर रहा था. तब एक उम्रदराज थकी हुई सी महिला उससे बार -बार फार्म भरने कह रही थी. तब वो बोला -मम्मी भर देगी.
मैंने उस महिला को पास बिठाकर कहा -“लाओ ! मै भर देती हूँ. “
तब वो पास आकर मुझे बताने लगी कि ये ये करना है. ज्यादा कुछ नहीं था मैंने फार्म भर दिया.
तब वो बताने लगी -“मै पहले फार्म भर लेती थी. पर मुझे ब्लड -प्रेशर है. तो अब डर लगता है. “
मैंने हामी भरी और उठ गई. वो भी काउंटर की तरफ चले गई.
मै सोच रही हूँ कि वो थकी और घबराई हुई थी. मुझसे थोड़ी सी बात की तो उसे अच्छा लगा.
ये सोचकर मुझे भी ख़ुशी हुई कि हम घर से निकल कर यदि किसी से बात कर लेते है किसी की सुन लेते है तो वो कितने खुश हो जाते है.
ऐसा लगा कि कितने ही अकेले लोग है जो आज बाहर इस मन से निकलते है कि कोई उनकी बात सुनेगा और उनकी भावनाओं को समझेगा.
लेखिका जोगेश्वरी सधीर
( मौलिक, स्वरचित @ कॉपीराइट )
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