श्रुति ji पर यंहा लिख रही हूँ वे बहुत बड़े परिवार से है जिनका एजुकेशन में बड़ा योगदान है हमारे तिवारी सर की बहु है जो हमें बीएससी में बॉटनी पढ़ाया करते थे इसलिए मै उन्हें बहुरानी ही कहती हूँ.
यदि बालाघाट में रहते श्रुति से मेरी पहचान हो जाती तो शायद इतनी जल्दी घर बेचकर मै मुंबई नहीं आती और पति को असमय नहीं खोती पति की मृत्यु ही इसलिए हुई कि हम घर बेचकर इस उम्र में दरबदर हो गये.
मै ज़ब बालाघाट से आई तो 2stray डॉगी वंही रह गये क्योंकि उन्हें तो लाना सम्भव नहीं होता. हम लोग ही तो घर बिका तो आनन फ़ानन में पहले नागपुर आये जंहा मेरे पति की तबियत बिगड़ती गईं उनको डिप्रेशन हुआ और खाने से अरुचि हुई ऐसे में ही मुंबई लाते समय अटैक आया और 40दिन बाद वो चले गये.
मुझे अपने जो डॉगी छुट गये थे उनकी बहुत याद आती थी ज़ब मै पति की मृत्यु के बाद अपने पेंशन फार्म भरने के लिए बालाघाट गईं तो उन्हें देख दुख भी हुआ वो इतने कृषकाय हो गए थे कि हड्डीयां निकल आई थी.
फिर एनिमल लवर एक ग्रुप से मै जुड़ी वंही मुझे श्रुति ji मिली और उन्होंने कहा कि वे उन दोनों बिछड़े डॉगी भुरू और झुंकि को feed कराने वंहा जाएंगी और वे वंहा गईं उन्होंने मुझे फोटो भी भेजी जिसमें मेरा प्यारा भुरू मुस्करा रहा था.
अब थोड़ा रिलैक्स हूँ मुझे अपने dogs को छोड़ने पर लोगों ने killer &ड्रामेबाज भी कहा. मै उनकी बातों का बुरा नहीं मान रही क्योंकि वे आज के संत है और धरती को बचा रहे है.
अभी श्रुति ji पर मै और लिखूँगी क्योंकि मै अभी उन्हें ज्यादा नहीं जान पाई हूँ लगातार फ्लैट देखने की भागदौड़ में किसी से मेरी बात भी अच्छे से नहीं हो रही है.
आभार श्रुति जी!मै आगे आपसे बात करके आपके समर्पण और सेवा -कार्य पर जानकारी लेकर दूसरी बार इसे फिर से लिखूंगी. आभार!धन्यवाद!
जोगेश्वरी sadhir @copy right
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